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जयति जैन नूतन

Abstract

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जयति जैन नूतन

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स्त्री हूँ

स्त्री हूँ

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क्या परिभाषा की जरूरत है

अपने अस्तित्व को परिभाषित

अपने दायित्व को परिभाषित

अपने सपनों को परिभाषित


अपने हौसलों को परिभाषित

जरूरत मुझे नहीं लगती

कि बताई जाए

हर एक चीज।


कुछ कहने से पहले

समझने की आदत डालो तुम

कब तक

यूँ उंगलियां उठाते रहोगे

आखिर

मैं भी इंसान हूँ तुम्हारी तरह

समझने की जरूरत मुझे नहीं


उस प्रत्येक को है

जो समझना ही नहीं चाहते

कि मैं हूँ हां

मैं भी स्वतंत्र हूँ

उन सभी के लिए

जिसके लिए तुम हो।


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