तुम प्रेम नहीं पारस हो
तुम प्रेम नहीं पारस हो
क्या तुम जानते हो माँ के बाद,
सबसे ज्यादा प्यार से दुलारते हो,
मेरे सारे डर, उदासी छू हो जाते हैं,
तुम जब भी मेरा नाम पुकारते हो।
मैंने बड़े जतन से प्यार का पौधा रोपा,
तुम्हारे दिल की नम जमीं पर।
तुमने सींचा इसे इतने नेह से,
इसके फूल उग रहे हैं हमीं पर।
सर्दियों में धूप जैसा गुनगुना,
गर्मियों में खस या गुलाब जैसा,
बरसात में गीली मिट्टी की खुशबू जैसा,
बसन्त में सूरजमुखी के बाग जैसा।
मुझे अक्सर सहारा देता है,
तुम्हारे अंदर छुपा ममत्व,
मैं बेहतर हो जाती हूँ, सुन्दर हो जाती हूँ,
जब स्वीकार लेते हो मेरा अस्तित्व।
इतना दुलार दिया, प्यार किया,
कि भूल गयी दुनिया के सितम,
तुम बिल्कुल पारस जैसे हो,
तुम्हें छूने से सोना हो रहे हैं हम।