असभ्य
असभ्य
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प्रेम में मनुष्य होना है,
हर व्यक्ति में प्रेम बोना है,
अशांति, बेचैनी, कुरूपता खत्म करने का,
प्रेम ही जादू टोना है।
मतलब दिव्य होना है?
नहीं सबको बताना है,
प्रेम बंदिश नहीं मानता,
अपना पराया नहीं जानता,
जाति, धर्म को नहीं छानता,
प्रेम बेवजह रार नहीं ठानता।
मतलब असभ्य होना है?
जो सभ्य होते हैं वो,
प्रेम को नहीं समझते,
प्रेमियों को नहीं बख्शते,
क्या तुम नहीं जानती,
प्रेम वाले यूँही नहीं मरते।
अच्छा फिर तो मुझे तुम्हारे प्रेम में,
असभ्य ही होना है,
तुम चाहे दिव्य या मनुष्य कुछ भी होना।
