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Jyoti Sagar Sana

Romance

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Jyoti Sagar Sana

Romance

विरहन की बारिश

विरहन की बारिश

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प्रेम तुम्हारा पहली बारिश जैसा आया,

तन मन अन्तस सब इसने महकाया।

मैं बावरी सी घुलती चली गयी,

तुममें पानियों सी मिलती चली गई।


गीली मिट्टी से सोंधे से मन में,

जाने क्या अंकुरित हो रहा रहा है।

मिट्टी क्या जाने कौन उसमें,

क्या, किस कारण से बो रहा है।


मिलन, बिछोह, स्मित, व्यथित, मन,

ये बारिश सब कह देती है।

पहले प्रेम की पहली बारिश बस,

मन गीला, गीला कर देती है।


तुम जल्दी आओगे मिलने,

कहती हर बरसात की बूंद।

तन और मन शीतल होगा,

यही सोचता मन आँखे मूंद।



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