जीना सिखा रही हूँ
जीना सिखा रही हूँ
कल एक झलक जिंदगी को देखा
मुझे देख कर वो हँस रही थी
फिर ढूंढना चाहा उसे
वो तेज़ी से भाग रही थी
पकड़ना चाहा उसे मैंने
मगर वो तो चली जा रही थी
मैंने रोकना चाहा उसे मगर
वो तेज़ी से चली ज रही थी
थोड़ी देर में वो
थक कर बैठ गई
तो पूछा मैंने उसे
क्यों मेरी इतनी परीक्षा लेती हो
क्यों मुझे इतना दुख देती हो
क्यों मेरा वक़्त नहीं बदलती हो
तो वो हँसते हुए बोली
पगले मैं जिंदगी हूँ
तुझे इस बेरहम दुनिया में
जीना सिखा रही हूँ।