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Kavi kapil khandelwal 'Kalash'

Abstract Classics Inspirational

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Kavi kapil khandelwal 'Kalash'

Abstract Classics Inspirational

*****बरखा-गीत*****

*****बरखा-गीत*****

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लो रिमझिम बरखा आई है

यह सबके मन को भाई है

मन मयूर खुश झूम रहा है

हृदय गमों को भूल रहा है 

सुखद शीत सँग लाई है 

लो रिमझिम बरखा आई है


धरती ने श्रिंगार किया है

सबको सुख आनंद दिया है

कुदरत ने ली अंगड़ाई है

मानो सबकी तरुणाई है

यह सबके मन को भाई है

लो रिमझिम बरखा आई है


मौसम का तेवर बदला है

किसान का भविष्य उजला है 

वन्य जीव हर्षित दिखते हैं

तन मन से पुलकित मिलते हैं

खुशियों की यह शहनाई है

लो रिमझिम बरखा आई है


वन -उपवन हो गये मगन हैं

खिलखिलाने लगे गगन हैं

मुस्कानों में अमराई है

जनता अंदर हुलसाई है

कायनात भी हर्षाई है

लो रिमझिम बरखा आई है


चारों ओर उमंग है बिखरी

खग कुल कलरव भी है पसरी

दादुर-मोर-पपीहा चहकें

वन-उपवन-मधुबन भी महकें

उन्नति की बहार छाई है

लो रिमझिम बरखा आई है।


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