कान्हा
कान्हा
हे कन्हैया तू
कहलाता है माखन चोर
खीेंच लेता है तू
सभी को अपनी ओर
नर-नारी -पशु-पक्षी तक
खिचे चले आते हैं
तेरी बांसुरी की तान से
तेरी जादुई शक्ल से
सम्मोहित हो जाते हैं सभी
ऐसा क्या है तुझमें
तेरी बांसुरी की धुन में
सम्मोहन- सम्मोहन- सम्मोहन
शायद इसी लिए तेरा नाम है मोहन
क्ंस को पछाडा
मधु-कैक्टभ को मार
राम ने जैसै
रावण को किया धराशाई
नाचे तूम नचाया
गोप-गोपियो को
नर्तन नही था
लीला थी तूम्हारी
समझने वाले कृतार्थ
भ्रमित रहने वाले मूर्ख
मनने वाले बडभागी
हे वासुदेव
कण-कण में तू
जल-थल में तू
जहां देखता
वही तू ही तू
अंधेरा बहुत है
रोशनी है तू
शत-शत नमन है
हमारा तुम्हें
आ जाओ इस धरा पर फिर से
हे बाल गोपाल
हे कृष्ण
हे जीवनाधार
हे यशोदा के कान्हा
देवकी के नन्दन
शत-शत नमन
शत-शत नमन !!!
