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Kavi kapil khandelwal 'Kalash'

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Kavi kapil khandelwal 'Kalash'

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कान्हा

कान्हा

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हे कन्हैया तू

कहलाता है माखन चोर

खीेंच लेता है तू

सभी को अपनी ओर

नर-नारी -पशु-पक्षी तक

खिचे चले आते हैं

तेरी बांसुरी की तान से

तेरी जादुई शक्ल से

सम्मोहित हो जाते हैं सभी

ऐसा क्या है तुझमें

तेरी बांसुरी की धुन में 

सम्मोहन- सम्मोहन- सम्मोहन

शायद इसी लिए तेरा नाम है मोहन

क्ंस को पछाडा

मधु-कैक्टभ को मार

राम ने जैसै

रावण को किया धराशाई

नाचे तूम नचाया

गोप-गोपियो को

नर्तन नही था

लीला थी तूम्हारी

समझने वाले कृतार्थ

भ्रमित रहने वाले मूर्ख

मनने वाले बडभागी

हे वासुदेव

कण-कण में तू

जल-थल में तू

जहां देखता 

वही तू ही तू

अंधेरा बहुत है

रोशनी है तू

शत-शत नमन है

हमारा तुम्हें

आ जाओ इस धरा पर फिर से

हे बाल गोपाल

हे कृष्ण

हे जीवनाधार

हे यशोदा के कान्हा

देवकी के नन्दन

शत-शत नमन 

शत-शत नमन !!!



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