प्रेम
प्रेम
ढाई आखर
प्रेम में न लेना
प्रेम में न देना
प्रेम में न छ्ल
प्रेम में न कपट
प्रेम में न माया
प्रेम में न मोह
प्रेम में न राग
प्रेम में न आसक्ति
प्रेम शरीर से नहीं
प्रेम मन से नहीं
प्रेम आत्मा से हो
प्रेम निच्छ्ल-निष्पाप
कलंक रहित जो
मीरा ने कृष्ण से किया
माँ जो बालक से करती है
अर्जुन ने कृष्ण से किया
शबरी ने राम से किया
प्रेम बूँद और सागर की तरह हो
वही सच्चा
प्रेम है ।