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daivashala puri

Tragedy Classics

4  

daivashala puri

Tragedy Classics

॥ राह ॥

॥ राह ॥

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हमने तो सबका भला चाहा 

सबके मददगार बने 

लेकीन दुनियां की नजर मे 

हम सिर्फ गुनहगार बने


देखते रहे औरोंकी खुशियां 

अपने मन की ना सुनी 

रास न आयी हमे ये दुनियां 

दुनियां से तो हमारी न बनी

  

जमाने के गर्दिश में 

कोई भी न था अपना 

जीवन मे हमने भी कभी 

देखा था एक सुंदर सपना 


कागज के फुलोंकी तरह 

दुनियां के ऊसुल है 

लगते है सब अपने मगर

राह पर हम अकेले हैं।


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