कमी खलती है
कमी खलती है
मेरी मुस्कान में खुशी की थोड़ी कमी है,
उम्मीद आगे बढ़ते-बढ़ते, बीच राह में थमी है।
उम्मीद की किरण भी मेरे सामने ही ढ़लती है,
तुम्हें बुलाती नहीं पर, तुम्हारी कमी खलती है।
ख्वाबों में भी अब तुम नहीं आते,
ज़िंदगी क्या अब सपनों में भी तुम्हें नहीं बुलाते।
मेरी मुस्कान टूटे रिश्तों के धागों को सिलती है,
पर फिर भी, तुम्हारी कमी खलती है।
आँसू बहने पर खुद उन्हें पोंछकर आगे बढ़ जाती हूँ,
ठोकर लगने पर, हँसकर सीढ़ी चढ़ जाती हूँ
मेरी हर राह अब तुमसे दूर होकर चलती है,
उन राहों में मैं मुस्काती हूँ, पर तुम्हारी कमी खलती है।
मैं खुश नहीं तो क्या, मुस्काती रहूँगी,
तुम्हें कभी कुछ नहीं कहूँगी।
तुम्हें ढ़ूँढ़ती मेरी आँखें सूखकर जलती है,
पर तुम्हें नहीं बताऊँगी की तुम्हारी कमी खलती है।
जो मैंने देखा वो तुम कभी ना देखो,
दुःखों को अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंको।
मेरे दिल से यही दुआ निकलती है,
कि तुम्हें किसीसे कभी ना कहना पड़े, "तुम्हारी कमी खलती है।"