बारहा देखा है
बारहा देखा है
रेत की चाँदनी सी
सफ़ेद चादर ओढ़ कर
सपने में आपकी सूरत देखी है
बारहा !
धुएँ का मंडप सा कुछ
और चुनर मेरे प्यार की
सरकते हुए भी देखा है
बारहा !
पढ़ न ले कोई नाम आपका
कहीं मेरे खामोश चेहरे पर
चेहरे पर सिकन भी देखी है
बारहा !
मेरे आँसुओं के मोती को
आपके हथेली का नूर
बनते भी देखा है
बारहा !
वह फ़िजा जो इस जज्बे की
ख्वाबगाह बनी थी
ख्वाब टूटते भी देखा है
बारहा !