पौराणिक कथा
पौराणिक कथा
चलो सुनाऊं मैं एक कथा तुम्हें
मोरमुकुट पीताम्बर धारी के बांसुरी की
सुन धुन बासूरी की गोपियां नाचन लागी
मुरली की धुन सुन मंत्रमुग्ध होकर बरजवासी
सब काम काज छोड़ बासुरी की धुन के पीछे भागी
बरसाने मे राधा रानी सुन धुन बासुरी की सोचन लागे
किसकी बासुरिया मोहे मेरे मन को सुन धुन मैं मन ही
मन क्यू मुस्कुराने लागी कौन बजाए बासुरिया लागे है
मोहे ऐसो जैसो कोई है मेरो सखा बरसाने में
चलो सुनाऊं मैं एक कथा तुम्हें
मुरली मनोहर गिरिधारी की
छाया प्रकोप जब इंद्र देव का
ब्रज मे होने लगी घनघोर है वर्षा
तब श्रीकृष्ण मुरली मनोहर ने बृजवासियों की
रक्षा हेतु उठा लिया गोवर्धन पर्वत को बाएं हाथ की
कनिष्ठ उंगली पर सब बृजवासियों ने तब शरण ली
गोवर्धन पर्वत के नीचे सात दिन सात रात तक
कृष्ण ने धारण किया था गोवर्धन पर्वत को
देख यह दृश्य हुआ चूर फिर घमंड इंद्र देव का
हाथ जोड़कर क्षमा याचना कर बोले इंद्र देव जी
क्षमा करो मुझे गिरिवर धारी फिर ना करेंगे हम
ये भूल मुरारी अहंकार में डूब गए थे आंखें खोल
दी आप ने हमारी हम न करेंगे फिर गलती कभी ये
क्षमा करो हमे गिरिवर धारी
उस दिन के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हो गई हर वर्ष होती है गोवर्धन पूजा भक्त अपनी भक्ति अर्पण करते परिक्रमा कर गोवर्धन पर्वत की
पंडित आचार्य सुनाते हैं पौराणिक कथा यही
केशव,माधव,मुरली मनोहर की छिपा हुआ है
ज्ञान इन पौराणिक कथाओं में सुन कर तुम जरा
अर्थ है समझो देंगी ये कथाएं ज्ञान कई तुम्हे।
