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Anjali Singh

Abstract

3.9  

Anjali Singh

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बेरुखी

बेरुखी

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लफ्जों की बेरुखी तो ज़रा देखो

तुझे देख कर ये मिटने लगे हैं

मुझमें ही देखो कैसे सिमटने लगे हैं।


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