STORYMIRROR

ऋता शेखर 'मधु'(Rita)

Abstract Classics

4  

ऋता शेखर 'मधु'(Rita)

Abstract Classics

नटराज अवतार

नटराज अवतार

2 mins
331

मनोहारी कथा है यह उस जगत की

मिलती कृपा जहाँ शिव और गौरी की

गौरवर्ण हुलसा मुखड़ा लगती थी न्यारी

महादेव शिव को गौरी थी प्यारी


शिव गौरी का प्रेम था ब्रह्मांड में अमर

सदियाँ काल बीते वह बना और प्रखर

शिव थे दीनों के नाथ याचकों के सहारा

शिव का हर रूप लगे गौरी को प्यारा|


हेमंत ऋतु का हो चला था गमन

हो रहा था ऋतु बसंत का आगमन

फाल्गुन मास ने लिए थे पंख पसार

धीमे- धीमे बह रही थी बसंती बयार


पीले कुसुमों से भरी थी बागों की शोभा

पारिजात बिखेर रहे थे स्वर्णिम आभा

खिली कलियाँ कह रही थीं सुन-सुन

भँवरों का शुरु हो गया था गुन-गुन

समाँ सुन्दर था सजीला था मधुमास

मुदित हृदय से चल रहे थे हास-परिहास|


संध्या की मधुर वेला आती थी नित्य

पर उस संध्या की बातें थीं अनित्य

गौरी प्यारी ने किए थे अद्भुत श्रृंगार

केशों में जड़ा था पुष्प हरसिंगार


किया शिवप्रिया ने सविनय एक निवेदन

‘’ स्वामी आपकी हर लीला है न्यारी

देखना चाहती हूँ आपका नृत्य मनोहारी’’

हर्षित हृदय से गणों ने भी किया अनुमोदन|


निवेदन प्रिया का सुन शिव हुए हैरान

कुछ सोच मुख पर छाई मंद-मंद मुस्कान

गौरी की चाहत को शिव ने किया स्वीकार

नर्तक बनने के लिए हो गए तैयार


शिव का नर्तन था बड़ा ही सुखकारी

गौरी उनके इस रूप पर हो गईं वारी

लगे गूँजने चहुँ ओर मधुर मध्यम सुर साज

नर्तक- रूप में तब शिव कहलाए नटराज|


मधुमास में था पवन भी सुगंधित

शिव के नृत्य से स्वर्ग था आनंदित

तभी माता काली का वहाँ हुआ पदार्पण

शिव ने किया माता को अपना नमन अर्पण


देखा काली ने शिव का नटराज अवतार

मुग्ध नयनों से माता निहारें बार-बार

अलौकिक नृत्य की थिरकन माता को भायी

साथ ही मन में इच्छा एक जगाई


नटराज के मोहक नृत्य की छटा

स्वर्गलोक तक रह जाए न सिमटा

यह दृष्य जो अभी तक है स्वर्गिक

धरा पर जाकर बन जाए लौकिक।


पहुँचीं माँ काली शिव के पास

नटराज न टालेंगे उनकी बात

थी मन में ऐसी ही आस

शिव ने भी मानी माता की बात।


लगाया शर्त एक अति सुंदर

संग नाचें माता नृत्य होगा मनोहर

धरती पर जम जाएगा रंग

माता नाचेंगी जब नटराज के संग।


काली का हृदय हो गया पुलकित

शिव और शिवा दोनों थे हर्षित

शिव ने धर लिया राधा का रूप

काली ने धरा कृष्ण का स्वरूप


शुरू हो गई मुरली की तान

सुन के धरावासी हो गए हैरान

चतुर्दिशा में मच गया शोर

दौड़े सब उपवन की ओर।


राधा कृष्ण का हुआ रास

मधुबन भी नाचा साथ-साथ

हवा में गूँजे मृदंग और शंख

मयूर भी नाचे फैलाकर पंख


था यह नृत्य बड़ा बेजोड़

दर्शन करने की लगी थी होड़

डालियाँ कदंब की लगीं झूमने लहराने

स्वर्ग से देवता गण लगे फूल बरसाने

अनुपम नृत्य की अद्भुत थी यह प्रस्तुति

कर जोड़े मानवगण करने लगे स्तुति।


शिव काली ने धरा था वेश विचित्र

फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी बना पावन पवित्र

अद्वितीय अति सुंदर थी वो रात्रि

भक्तों के लिए बन गई ‘महाशिवरात्रि’।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract