मित्रता
मित्रता
छाँव मिले या धूप हो, अच्छे लगते मित्र।
भेद भाव से वह परे, खींचे सुन्दर चित्र।।1
समय विकट हो या विषम, खोले रखते द्वार।
करते हैं दिल से सदा, प्रेमपूर्ण व्यवहार।।2
सहज हृदय से मित्रता, निभ जाती हर बार।
जहाँ जुड़े हों मित्र के मन से मन के तार।।3
मित्रों के भी भेद हैं, देवें हम जो ध्यान।
बचपन कुछ कॉलेज या, औचक हो पहचान।।4
बचपन के हर मित्र से, होती सच्ची बात।
ऊँच-नीच कुछ भी नहीं, नहीं धर्म या जात।।5
मिले मित्र कॉलेज में, समझे दिल की बात।
उनके हँसी मजाक में, मस्ती की सौगात।।6
कुछ मित्र उस जगह मिले, जहाँ नौकरी धाम।
बिन उनके न काम चले, जब छुट्टी का काम।।7
वैसे भी कुछ मित्र हैं, जहाँ रक्त-सम्बन्ध।
मात-पिता भाई बहन, अनुपम है अनुबंध।।8
जो लें पौराणिक कथा, वहाँ एक ही नाम।
कृष्ण ने बाल मित्र के, पग धोए निज धाम।।9
एक मित्र हनुमान थे, जिनको प्रिय थे राम।
लाये सिय को खोजकर, मिला भक्त का नाम।।10
द्रौपदी के कृष्ण-सखा, बने चीर- आधार।
जहाँ भाव निःस्वार्थ है, मित्र बने जग-सार।।11
पशु-पक्षी घर द्वार के, दोस्त बने दिन-रात।
देते हैं बिन मोल वह, खुशियों की सौगात।।१२