छत्रपति शिवाजी- पराक्रम की पहचान
छत्रपति शिवाजी- पराक्रम की पहचान
19 फरवरी 1630 में जन्म हुआ एक पराक्रम का
जिसने रचा नवीन इतिहास।
पिता शाहजी और माता धर्म परायण जीजाबाई के पुत्र
वो थे वीर छत्रपति शिवाजी महाराज।।
महाराष्ट्र दुर्ग शिवनेरी में जन्मे इस वीर पुत्र को
पाकर भारत माता की धरती हुई धन्य।
इस धरती पुत्र के महान पराक्रम की कहानी
आज भी सभी को जुबानी है याद।।
लेकर नाम महादेव का जब भरते थे हुंकार शिवाजी
दुश्मन भी रह जाते थे दंग।
जहाँ पड़ती ज़रूरत कर लेते संधि
माता की धार्मिक शिक्षा भी सदैव रखते थे संग।।
खड़ग, भाला, तलवार ये तो उनके खेल खिलौने
युद्ध नीति में भी थे वो बड़े ही निपुण।
मुगल भी रह जाते थे अचंभित होकर
देख वीर शिवाजी के युद्ध कौशल के ऐसे रंग।।
मराठा साम्राज्य की नींव रखी बुद्धिमता, कौशल से
शिवाजी महाराज थे मराठाओं की शान।
दयालुता, सौम्यता, प्रेम और परस्पर सहयोग
इन गुणों से परिपूर्ण था इस वीर पुत्र का नाम।।
किसी भी धर्म के विरुद्ध नहीं थी उनकी लड़ाई
वो तो केवल अत्याचार का करते थे विरोध।
अपने शौर्य से छत्रपति शिवाजी कहलाए
सभ्यता और संस्कृति के थे वो संरक्षक महान।।
नारी और सभी धर्मों के सम्मान के साथ
मातृभूमि पर भी करते थे वो अभिमान।
कर्तव्यनिष्ठा और धर्म परायणता की मिसाल
वो छत्रपति शिवाजी महाराज थे पराक्रम की पहचान।।
बुलंद हौसला लेकर दिल में उतर जाते थे रण में
है अमर इनकी कहानी, वीरता इनका नाम।
कर्म उनकी पूजा कर्म ही धर्म उनका
कर्म योग की ज्वाला में सर्वस्व कर दिया बलिदान।।
लड़ते थे छापामार युद्ध बड़ी कुशलता से शिवाजी
नौसेना के वो जनक कहलाए।
बुद्धिमानी और वीरता से छक्के छुड़ाते थे दुश्मनों के
पर कभी उनके हाथ ना आए।।
मातृभूमि के लिए सर्वस्व निछावर करना ही उनका धर्म
ऐसे थे वो शिवाजी वीर महान।
मान बढ़ाया भगवा का इस धरती पुत्र ने
तभी तो आज आसमां में भगवा शान से लहराए।।