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Uma Bali

Abstract

4.5  

Uma Bali

Abstract

अच्छा लगता है…………..

अच्छा लगता है…………..

2 mins
310


जेठ की दोपहरी,

चिलचिलाती धूप,

मुँडेर की सिमटती

छाया में खड़े हो कर

अक्सर,

निखरे हुए रंगों वाले,

चमकते दमकते फूलों को,

एकटक

निहारना ,मुझे

अच्छा लगता है………………………

कुछ को शाम ढलते 

ढल जाना है,

कुछ को काँटों का 

साथ निभाना है,

कुछ निखर गए हैं

आग में तप के,

कुछ बिखर गए हैं

तेज तपिश से,

उन सब का दिल बहलाना, मुझे

अच्छा लगता है………………….

तेज हवाओं का दौर,

बादल की गड़गड़ाहट 

बिजली का शोर,

टप -टप गिरती बूँदों में 

उन का एक दूसरे पर

गिर गिर जाना, मुझे

अच्छा लगता है……………….

तन कर खड़े थे जो कल

टूट गए हैं,

उन के साथी पत्ते भी उनसे 

छूट गए हैं,

कुछ नन्हे पौधे मस्ती में

झूम रहें है,

उनकी मस्ती में रम जाना, मुझे

अच्छा लगता है………………….

सर्द जाड़ा 

कड़कड़ाती सुबह

अलौकिक संजोग,

घना कुहासा

सिकुड़ते लोग,

पर, रात भर ठिठुरे

फूलों का

ओस कण संग

रवि किरणों में मिल जाना ,मुझे

अच्छा लगता है…………………..

सर्दी गर्मी हो

या बौछारें,

पतझड़ बसन्त हो

या बहारें,

हो सुंदर फूलों की

लम्बी क़तारें 

किन्तु

मस्त व्यस्त झूमते

काँटों का 

अपनी ख़ुद्दारी पर इतराना ,मुझे

अच्छा लगता है……………………..

 

                      


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