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Vivek Agarwal

Classics Inspirational

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Vivek Agarwal

Classics Inspirational

ब्रह्म-ज्ञान

ब्रह्म-ज्ञान

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आओ चलो एक गहरा राज तुम सबको बतलाता हूँ।

जीवन का ये सत्य शाश्वत आज तुम्हें समझाता हूँ।

पञ्च तत्व से बनी ये काया तन अपना ये नश्वर है।

तो क्यूँ इससे मोह करें जब क्षणभंगुर ये नाता है।


तन भले नश्वर हमारा पर आत्मा नष्ट होती नहीं।

मृत्यु के पश्चात भी अस्तित्व अपना खोती नहीं।

प्रेम जड़ से कौन करता है चेतना तभी प्रेम है।

बिन आत्मा तन सीप है जिसमें कोई मोती नहीं।


आत्मा दिखती है कैसी कैसा इसका आकार है।

आत्मा साकार है या शून्य सरीखी निराकार है।

कैसे समझायें अपने मन को आत्मा का अस्तित्व है।

जो स्वयं अनुभव कर सकें बस वही स्वीकार है।


है पवन दिखती नहीं पर हर श्वास में आवास है।

गंध पुष्प की न दिखे पर फिर भी हमें आभास है।

ऊर्जा के रूप कितने पर क्या किसी ने देखा है।

ब्रह्म के भी रूप अनंत और सर्वत्र उसका वास है।


जड़ को चेतन करे आत्मा बिन इसके तन धूल है। 

अजर अमर अनंत अनादि ब्रह्म ही इसका मूल है।

एक ब्रह्म अटल ब्रह्माण्ड में बाकी सब है मिथ्या।

मोह-माया की कीचड़ में फँसना सबसे भारी भूल है।


है गगन में आदित्य एक पर सर्वत्र उसकी धूप है।

कोटि घट में प्रत्येक बिम्ब एक सूर्य का प्रतिरूप है।

इस सृष्टि में भी एक ब्रह्म जीवात्मा हैं भिन्न भिन्न। 

स्रोत ब्रह्म गंतव्य ब्रह्म सब ब्रह्म का ही रूप है।


अस्त्र शस्त्र सब व्यर्थ हैं कभी आत्मा कटती नहीं।

अगणित सूर्य अनल उगलें पर आत्मा जलती नहीं।

जीवन मरण का चक्र निरंतर आत्मा अनुभव करे। 

योनि योनि करती प्रवास पर आत्मा मरती नहीं।


आत्मा का अंत नहीं है और न ही है आरम्भ।

आत्मा अपनी नहीं तो किस बात का है दम्भ।

बिन आत्मा कुछ भी नहीं और आत्मा है ब्रह्म की। 

जब कभी ये बोध होगा वो मुक्ति का प्रारम्भ।


जीवात्मा जग में भटकती ब्रह्म ही अंतिम टेक है। 

अंततः सागर पहुँचती विश्व की नदी प्रत्येक है।

ब्रह्म प्राप्ति लक्ष्य उत्तम और मार्ग उसके तीन हैं।

ज्ञान भक्ति कर्म-योग साध्य सबका बस एक है।


गीता में भगवान ने भी यही तीन मार्ग हैं बतलाये।

क्या भेद है क्या एक है रहस्य समस्त समझाए।

नहीं श्रेष्ठ कोई दूसरे से हैं सभी बस ब्रह्म रूप।

जो उपयुक्त लगे जिसको मार्ग वही वो पा जाए।


ज्ञान में तू हर समय चिंतन मनन और ध्यान कर।

भक्ति में सब कुछ भुला प्रभुनाम जपते गान कर।

और अगर अभी शेष हैं काज तेरे इस संसार में।

तो कर्मयोग है मार्ग उत्तम बस वही संधान कर।


जो कर्म अगर निष्काम हो तो पाप लगता है नहीं।

परिणाम उत्तम भी अगर तो गर्व चढ़ता है नहीं।

हर कर्म मेरा तुझको अर्पण फल तेरा प्रसाद है।

प्रतिकूल परिणाम भी मिले विषाद भरता है नहीं।


मोह त्याग इस देह का प्राणी ब्रह्म का कर ध्यान।

संसार सारा बस एक माया राज यह ले जान।

अज्ञान दुःख का कारक है और ज्ञान सुख का द्वार। 

सब ज्ञान और विद्याओं से बढ़कर है ये ब्रह्म ज्ञान।


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