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Manoj Kumar Meena

Classics

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Manoj Kumar Meena

Classics

माता गोरा का पत्र महादेव को

माता गोरा का पत्र महादेव को

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सुध बुध खो गई मेरी सारी मैं तेरे रंग में रंग गई शंकर,

तू अघोरी मैं महलों की रानी जो तू है ईश्वर तो मैं तेरी प्रेम कहानी,

मुस्कान तेरी आभूषण मेरे मैं महलों में पली बढ़ी और तू तो टेहरा है केलाशी,

मुझे मखमल के गद्दे अब भाए ना मैं तो पत्थर पे सो लूंगी

जो आँखो से अपने तू बाहये आंसू तो मैं अपने हाथो से पोंछूंगी,

रोयेगा तू बिन मेरे तो मैं भी तेरे वियोग में रो लूंगी,

मैंने सखियों से अपनी बोल दिया कि ब्याहा मेरा है शंकर संग,

सखिया छेड़ रही मुझको की जो बन बैठा है बैरागी आखिर तू कैसे भाए उसका मन,

वह सन्यासी वह अविनाशी वह तो कैलाश का स्वामी है,

नाग गले में जटा में गंगा और बाल थोड़े घुंघराले से हैं,

आखिर कैसे भाए मन उसका तू जो ध्यान में बैठा है,

तू प्रेम करे उससे धरती की नारी और वो कैलाश पे बैठा है,

सांप बिच्छुओं का डेरा वहां पे और भूत प्रेतों की सेना सारी

भस्म लगये तन पे अपने वो तो है भोला भंडारी,

तू महलो की रहने वाली कैसे वहा रेह पायेगी,

ध्यान में रहता शंकर वो तू कैसे अपना जीवन बितायेगी,

सुनकर मैं घबरा तो गई पर प्रेम मेरा अपार रहा,

सखियों को मैंने बोल दिया और भेद सारा खोल दिया,

की ब्याहा करूंगी तो शंकर से वरना जीते जी मर जाउंगी,

मैं हिम राज की पुत्री हु पर अब अर्धांग्नी शिव की कहलाऊंगी,

बाल थोड़े घुंघराले है जो उनको मैं सवारूंगी, भस्म लगाए वो तन पे

अपने तो मैं भी भस्म लगा लुंगी,

शृंगार करूंगी फूलो से अपना और हर रूप में शिव को अपनाउंगी,

जो सूरज का तेज है शंकर तो मैं शीतल जल बन जाउंगी,

चंद्र मुकुट है मस्तक पे जिसके मैं उसपे वारी जाउंगी,

जो ध्यान लगाए बैठे शंकर तो मैं भी मंद मंद मुस्काउंगी,

प्रेम मेरा है शीतल जल और जो मैं शिव से पाऊँगी,

अमर प्रेम कहानी मेरी मैं इस पत्र में लिख के जाउंगी,

पढ़ लेना जो मन करे तो और यही पत्र मैं अपने शंकर को सुनाऊँगी,

जो महाकाल है शंकर मेरा तो मैं महाकाली बन जाउंगी,

प्रेम अपार शंभू से मेरा मैं जीवन भर निभाऊंगी!"

'सुध बुध मैंने खो दी सारी अब मैं शिव रंग में रंग जाऊंगी।'



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