नारी रूप में नवदुर्गा
नारी रूप में नवदुर्गा
स्वर की देवी स्वाग्नि, स्वर्ण की देवी स्वर्णा,
जो आदि शक्ति बनकर आये तो पार्वती माँ दुर्गा!
एक रूप में स्वर का भण्डार है तो दूजे रूप में वैभव अपार,
पाप बढे जो इस धरती पे तो तीसरा रूप करे संहार!
श्वेत कमल संगीत है और एक कमल में धन का भण्डार,
करे माँ तु सिंह सवारी ना मन में तेरे कोई वीकार!
स्वर्ण मुकुट मस्तक पे तेरे और आँखे नीलकमल सी है,
गर्भ में तेरे संसार बसा है और भक्तो पर करती करुणा की बौछार!
सोम्य रूप में तु सर्जन कर्ता और रौद्र रूप में करती संहार!
हर स्त्री का सम्मान है तु और इस जीवन का आधार भी तु!
रक्त बीज का करके वध तुने ही तो रक्त का पान किया,
दुर्गमासुर की मृत्यु हेतु तुने दुर्गा का अवतार लिया!
सीता भी तुम राधा भी तुम कभी रुकमणि बनके जन्म लिया,
हर स्त्री में वास तुम्हारा, मनुष्ये जीवन का सार हो तुम!
सरस्वती हो लक्ष्मी हो तुम और तुम ही दुर्गा बनकर आती हो,
भक्तो के उदार हेतु तुम नवदुर्गा केहलाती हो!
नवरात्री है पर्व तुम्हारा, इस पर्व में तुम नो रूपों में पूजी जाती हो,
कभी सरस्वती, कभी लक्ष्मी तो कभी नवदुर्गा केहलाती हो!!!