आया पर्व दशहरे का
आया पर्व दशहरे का
एक बुराई राम ने मारी एक बुराई हम सब पर भारी राम है चिंतन चेतना और राम ही सनातन सत्य है, रावण बैर विकार है हर अधर्म का वह सार है, विजय सत्य की हुई हमेशा बुराई की होती हार है, आया पर्व दशहरे का यह पाप का अंतिम संस्कार है,
मुझे किस्सा याद पुराना आया रावण ने था सबको सताया, श्री राम जब आए वन में तो माता सीता को वह हरलाया, जटायु के काट के पंख उसने अपना बल था दिखाया, दिन बीते कई बीते वर्ष राम ने फिर पता लगाया साधा बाण सच्चाई का रावण को भी मार गिराया, अजय अमर अविनाशी रावण क्षण भर में ही सब खो बैठा जो पाया इतने वर्षों में वह स्वर्ण मुकुट गवा बैठा श्री राम के हाथों मर के वह पाप से अपने मुक्त हो गया,
"मनसा वाता कर्मणा सत्य रहे भरपूर जो सत्य का बाण हो हाथ में तो बाधाएं हो दूर"
कलयुग में पुतलों के दहन का बढ़ने लगा रिवाज पर मन का रावण आज तक ना जला सका ये समाज, रामकृष्ण का नाम धर ये करते हैं गंदा काम कलयुग में तो राम का हुआ नाम बदनाम, आज धर्म की आड़ में होते हैं दुष्कर्म पंडित और ब्राह्मण भी ना रहे राम के संग,
" मैं धर्म की स्याही घोल रहा पन्नों पर लिख कर बोल रहा"
सत्य भूलकर लोग करते अत्याचार हैं भगवान तुम्हारे भारतवर्ष में होते बलात्कार हैं, कलयुग का मानव तो रावण से भी बेकार है नहीं समझता बात जरा सी की वह उसका अहंकार है,
रावण शिव का परम भक्त था बहुत बड़ा था ज्ञानी बस यह इतनी सी बात समझते हैं और करते अपनी मनमानी, नहीं जानते यह शायद दस सीर बीस भुजाओं वाला वह था राजा अभिमानी नहीं किसी की सुनता था वह करता था मनमानी उसकी औरों को पीड़ा देने की आदत रही पुरानी, श्री राम से जो युद्ध हुआ तो याद आ गई नानी, शिव को याद किया विपदा में अपनी व्यथा बखानी, जानबूझकर बुरे काम की जिस थी मन में ठानी,
महादेव ने सोचा ऐसे कि अब ना दया दिखानी, नष्ट हुआ सारा ही कुनबा और लंका भी पड़ी गवानी, अंतः मरा राम के हाथों रावण,
और मुझे अपने हाथों लिखकर तुम्हें थी यह बात बतानी !