सूरज की ठोढ़ी उठाई जाए
सूरज की ठोढ़ी उठाई जाए
एक बड़ी-सी सीढ़ी पर
खड़े होकर
उसे जकड़ ही लेना है
एक बार
पूरा आसमान अपनी बाँहों में।
बित्ते-भर जगह भी नहीं रखनी है उसे
उन दोनों के बीच
एक बार
सूरज की ठोढ़ी उठाकर
देखना है आँखों में आँखें डाल
हवा को बाँध लेना है अपने जूड़े में।
जो आग जला रही है न उसे
उसका दावानल कर देना है
पर डरो नहीं
वो जो चाहती है न
कभी नहीं करती
इसलिए वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगी।
इतना कह
खुद ही हँस देती है अपनी बातों पर
थोड़ी पगली है वो।