हाथों से छूट गया
हाथों से छूट गया


बीता हुआ फिर मिल जाए
ऐसा ज़रूरी नहीं
होता तो यूँ ही है
कि चीज़ें लगातार
खोती चली जाती हैं।
खो जाते हैं ख़ूबसूरत दिन
अच्छे लोग और रिश्ते
जिन्हें थामा होता है
मजबूती से हमने।
हम भागते हैं किन्हीं और वजहों से
किन्हीं और ही कारणों के पीछे
सामने होता है गड्ढा या कि खाई ही
या हमारी कब्र ही पर हम
अनजान रहते हैं।
बस ललचाए भागते चले जाते हैं
उसके बाद
जो बचा रहता है
वह सहेजने जैसा नहीं होता
और जिसे जतन करना होता है
वह खो जाता है।
इसी तरह किसी दिन
खो जाती है हमारी हँसी
गुपचुप स्वीकार लेते हैं
हम अपनी हार।
और बहुत पहले
खो चुके होते हैं जीतना
और जीना भी।