ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी बहुत प्यारी सी है; भोली सी है
मगर कम्भख्त बेहद छोटी सी है ।
फुर्सत है ही नहीं रूठने का रूठो को मनाने का ।
रूठने का मतलब है उन कीमती पलो की बर्बादी;
वो पल जो किसीको हसाते प्यार करते सहलाते
एक मीठी सी याद बनाते गुज़ार सकते थे ।
क्या सोचके कोई रूठ जाता है फेर लेता है मुँह
दूर चला जाता है किसीसे ?
घमंड ज़िद दंभ अंहकार अभिमान दर्प मद
कौनसा कारण हैं इनमे जो ख़ुशी से भी कीमती हैं ?
कब समझेंगे हम की कितना नश्वर है ये जीवन !
जो पल इस पल “है” वो अगले ही पल “था” बन जायेगा ।
वो पल जो “था” बन चूका वो लौटके कभी नहीं आएगा ।
क्या रखा हैं रूठने मैं कैसी जीत है दूर जाने मैं ।
जाना तो सबको एकदिन हैं ही; कौनसा यहां हमेशा रहना हैं
लेकिन जाने से पहले दुनिया को थोड़ा और बेहतर छोरके जाना हैं।
चंद लम्हे हसीं के; कुछ पल खुशी के हमें बनानी हैं;
बहुत सारी यादें छोड़ के जानी हैं जिन्हे सबको बाद मैं हसानी हैं ।
रोने के लिए ज़िन्दगी के बाद काफी वख्त मिलेगा
हंसने का मौका बार बार दस्तक देके कभी नहीं आएगा ।
इसीलिए हसो; मुस्कुराओ; खुश रहो; प्यार करो; मोहब्बत बाटों;
क्यूंकि क्या पता अगला “पल” तुम्हारा हो या न हो ।
