STORYMIRROR

Neha Dubey

Drama

4  

Neha Dubey

Drama

कूड़ादान

कूड़ादान

1 min
295

सुबह एक आवाज़ का पीछा करते हुऐ 

मेरी नींद में डूबी आँखें

अदरक की खुशबू बिखेरतीं,

 

चाय के उबाल मे दिन चढ़ती

दुकान से होती हुई

वहाँ खड़े कश में बेफ़िक्री का धुँआ 

उड़ाते उन लोगों पर जा ठहरीं।


लगा यहीं से वो आवाज़ आई थी

औऱ मैं उन की हल्की धूप सी 

खिलखिलाती लतीफ़ों भरी आवाज़ 

के बीच उस आवाज़ वाले शख्स को 

तलाशने लगी,


पर नाक़ाम सी रही

उनकें जानें पर 

सिगरेट में फेंकें धुँए के साथ 

ख़ाली कप जब कूड़ेदान को चिढ़ाने लगें

तो फिर से एक आवाज सुनी। 


हाँ, वो आवाज़, पहचानी सी आवाज़

जिसका पीछा मेरे कानों ने किया था 

ये क्या कूड़ेदान की आवाज़ ?


हाँ ये हरे रंग का डिब्बानुमा कूड़ादान

स्वच्छ भारत की गुहार लगता कूड़ादान

लगभग चीख़ते चिल्लाते हुए

बड़बड़ा रहा था।


अखबारों की वासी खबरें 

राजनीती के सड़े-गले मुद्दें

सब डालदो ना यहाँ

सब समां लूंगा मैं, 


हाँ अपनी यहाँ-वहाँ 

कूड़े फेंकने की गंदी आदत को भी 

पर ,उस की ये आवाज़ किसी ने नहीं सुनी

लगभग अनसुनी अनदेखी

करते लोग जाते रहे, 


और वो कूड़ादान हर जाते

शख्स पे चिल्लाता 

अरे ! अरे भाई, कचरा कुड़ेदान में तो

डालते जाते। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama