सपने
सपने
चुने थे कई, बूने थे भी
सपने उसने अपनों के
सजाए थे कई रंगमहल
साथ अपने राजकुमार के।
था यकीन उसको, ज्यादा
अपनों से उन पर
तय था डटलेगी वो
जमाने की हर एक ठोकर।
झूकती थी नजर हमेशा
इकरार के ईसारे से
ढूंढती थी हमेशा, वो आंखें
हर पल, हर वक्त।
पाने को सिर्फ एक मिठास
सांसो के एहसास से,
जैसे मुर्दो में
डालागया जान हो।
क्योंकि,
रोज मरती थी जो
अपनों से ज्यादा
उन्हें भरती थी
क्योंकि था यकीन उसको
ज्यादा अपनों से उन पर।

