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Naresh Kumar Behera

Romance Classics

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Naresh Kumar Behera

Romance Classics

तुम क्या समझो !!

तुम क्या समझो !!

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तुम क्या समझो ?

मैं न समझा !

जो ना समझा कल, वो 

आज समझा मैं।


वो गुजरा हुआ कल

भरे सपनें थे तेरे

जो मैं ना समझा 

उसका दर्पण हुँ मैं आज।


खड़ा हुँ इस दहलीज़ में आज 

जहां कई ठोकर खाई तुमने

जो पत्ता पत्ता सा था

आज वो पत्थर बन गया।


मेरी आज पे वो हंसे, रोये

संवारना तो मुझको है 

जिंदगी उसकी है, फिर 

क्या गिला क्या सिकवा है !


मरना तो सबको है एकदिन 

लेकिन वो मौत ही क्या, 

जिसमें तुम्हारी महफिल न हो, 

पूरी वो आखिरी फरमाइश न हो।


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