संकेत
संकेत
मैंने सोचा न था
फिर भी मैं चला आया
ग्रहण की वो घड़ीे से
गुज़र गया मैं।
मैं भी अनजान था
अनदेखा था
परे था उसकी हैवानियत से
गैर गुजारा था मैं ।
निकल पड़ा था राहों में
पर वो ले चली कहीं और
वादा जो किया था, कई बार
लौट न सका फिर कभी।
पता न चला कब
ढलने लगा ये सूरज
छुपने लगे सब
अपने अपने नीड़ में ।
मैं भी अंजान था
पर खबर थी मुझे
जाना था उस पार
फिर एक सुबह की
तैयारी में थे सब ।
कहने को तो हजार है
आज के लिए बस यही
वक्त से पहले लौट जाओ
कोई है तुम्हारी आस में ।