कशिश
कशिश
कुछ ऐसे बिखरे की संभलना आ गया,
यूँ ही निकले थे सफ़र में,
अब रास्तों को पढ़ना आ गया,
ध्यान था अब तक धुन में,
अब गीत केे लफ़्ज़ों को जो समझना आ गया,
कुछ ऐसे बिखरे की संभलना आ गया,
तन्हा थे भरी महफ़िल में,
अब खुद में पूरा होना आ गया,
बैठे थे किसी केे इंतज़ार में,
अब तो दिल को बहलाना आ गया,
कुछ ऐसे बिखरे की संभलना आ गया,
रातें गुज़री एक साथ की आस में,
अब बेपरवाह होनाा आ गया,
प्यास भूजानी थी बरसात में,
अब प्यास को सहना आ गया,
कुछ ऐसे बिखरे की संभलना आ गया।