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Shoumeet Saha

Abstract Drama Tragedy

4.2  

Shoumeet Saha

Abstract Drama Tragedy

बस जी रहा हु...

बस जी रहा हु...

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68


सुबह उठके बस चलने लगे 

तो लोग पूछते है कि 

क्या हाल है तुम्हारा ?

और मैं कहूँ 

बस जी रहा हूँ,


काम-धाम सम्हाल कर

जब घर लौटे 

तो लोग पूछते हैं कि

क्या हाल है तुम्हारा ?

और मैं कहूँ 

बस जी रहा हूँ,


इस दुनिया से और क्या कहना 

जो दिल में दबी ख़ामोशी न समझे,

उन लोगो से क्या कहना 

जो मुस्कुराते चेहरे के पीछे 

ग़म के अँधेरे को न समझे,


समझे गर ये दुनिया तोह बस यही 

की जो दिखे आईने की तरह वही सच है,

पर उस आईने में दिखते

अक्स की गहरायी 

कोई न समझे,


इसीलिए ही तो खामोश रहता हूँ,

इसीलिए ही तो बेबस होके भी

ठीक रहता हूँ

और जब लोग पूछने लगे की 

क्या हाल है तुम्हारा ?

और मैं कहूँ बस जी रहा हूँ,


निकले अश्क भी गर आँखों में,

दर्द बहते हूँए नदी की तरह,

पोंछ लेता हूँ उन्हें चुपके से,

जब लोग पूछने लग जाये कि

क्या हाल है तुम्हारा ?

और मैं कहूँ बस जी रहा हूँ।  


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