यह ज़माना है
यह ज़माना है
नज़रों को धुआँ दिखे
और ज़माना आग चाहता है,
यह सोज़ - ए - दिल है जनाब
बस जाग जाता है,
यूँ पन्नों में हम लिखते रहे बेझिझक
ये सोच के की शायद सुनाने को मिले,
भूल गए थे की यह ज़माना है जनाब,
यह बस आवाज़ पहचानता है,
खामोश खड़े रहे जो हम
तोह ज़माने ने बेज़ुबान समझा,
महफ़िल यहाँ नया है जनाब,
बस थोड़ा वक़्त चाहता है,
यूँ तोह कमरा मेरा भी छोटा है
पर चीज़ों की कमी नहीं,
अलमारी में मेरे भी कपड़े है,
किताबों से भरी नहीं,
यह किताबों से सजी अलमारी - आ - दुनीयाँ
तोह किसी और का शौक था,
और ज़माना भूल जाता है जनाब
की मैं शोमीत हु,
जॉन एलिया नहीं,
शायर कहु खुद को तोह
ज़माना मुझ पे हॅसने लग जाए,
कहते है लाखोँ देखे है तेरे जैसे,
हर रोज़ आने - जाने लग जाए,
कोशिश यही रहती है की अलफ़ाज़ मेरे
सच्चे ज़मीर को छुले,
पर यह ज़माना है जनाब
यह बस परदाजी जानता है....