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Shoumeet Saha

Others

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Shoumeet Saha

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मुझ में कोई नादानी बाकी नहीं

मुझ में कोई नादानी बाकी नहीं

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बागीचे में खेलते बच्चों को जब हम देखते हैं

गौर से देखते रहते हैं उनके हँसते हुए चेहरों को,

इन्ही को देख आस-पास खड़े लोगों के 

खुश-मिज़ाजी देखते हैं ,


गुफ्तुगू करे इन्ही कुछ बच्चों से तो

खयालात इनके कितने मासूम और नादाँ लगते हैं ,

पर जब खुद में झाँक के देखता हूँ तो  

लगे कि खयालात मेरे 

गुबारों की काली छाँव में रहते हैं ,


ये बात सिर्फ उस पल के लिए होती तो

हम उसे नज़रअंदाज़ कर भी देते,

पर इस बात से तो हम पहले भी वाक़िफ़ थे,

ये तो आज की बात नहीं,


खुद से करते रहते हैं हम सवाल कि  

कहाँ खो गयी वो रंगीनियां,

वो मासूमियत, वो रौशनी का ख्वाब?

जहां कोई झिझक न थी,

जहाँ न था कोई डर का सवाल,


अफ़सोस है हमें इस बात का 

की अब वो दिन नहीं रहे,

अब तो जैसे मुझ में कोई 

नादानी ही बाकी न रही,

बस जी रहा हूँ , 

यही बात खुद को जताना पड़ता है ,


दो इश्क़ करने वालों को देखते हैं ,

रूठने-मनाने का सिलसिला जारी रहता है ,

नादानी से भरी रहती है हरकतें एक की,

और दूसरा उसका जवाब मुस्कुराकर दे देते हैं ,


ये नूर-ए-मोहोब्बत रातों को 

हमें भी दिखा करती थी इक रोज़,

चाँद, तारों को देख कर जैसे 

सपनों को सजाना पड़ता था,


अब वोह ख्वाब-ए-मोहोब्बत हैं गहरी गुबारों में क़ैद,

हैं दिल भी अब खाली-खाली सा बिन एहसास के,

हैं सूखे-सूखे से पलकें जो मेरी

यादों की खातिर उन्हें भी अश्कों से भिगाना पड़ता हैं ,


अफ़सोस हैं हमें इस बात का 

की अब वोह दिन नहीं रहे,

अब तोह जैसे मुझ में कोई 

नादानी ही बाकी न रही,

बस जी रहा हु, 

यही बात खुद को जताना पड़ता है,


दिलासे तो देती रहती हैं दुनिया की 

ज़ीस्त की रौशनी फिर आ जाएगी,

जो थे अंधेरों में डूबे हुए 

वोह फिर से उजालों में नज़र आएंगी ,


इन दिलासों पर अगर इतना हैं यकीन 

तो मेरे खोये हुए सारे पल मुझे लौटा दे,

मेरा बीता हुआ बचपन मुझे वापस लौटा दे,


लौटा दे वोह दिन जो गुज़ारे थे मैंने 

अपने माशूक़ के खातिर,

लौटा दे वोह दिन जो मैंने 

अपने दोस्तों के साथ गुज़ारे थे,


अफ़सोस हैं हमें इस बात का 

की अब वो दिन नहीं रहे,

अब तो जैसे मुझ में कोई 

नादानी ही बाकी न रही,

बस जी रहा हूँ  

यही बात खुद को जताना पड़ता हैं.


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