STORYMIRROR

Shoumeet Saha

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Shoumeet Saha

Abstract Drama Tragedy

मुझ में और हिम्मत नहीं ...

मुझ में और हिम्मत नहीं ...

1 min
779


मुझ में और हिम्मत नहीं 

की तुझे नज़र-अंदाज़ कर सकूँ,

अब हालात है ऐसी 

के बिन लव्ज़ों के बयान कर सकूँँ,


है कैसी ये चुभन ख़ामोशी में भी,

काटें निकाल कर भी 

ज़ख्मों का कोई इलाज न करा सकूँ,

कैफियत-ए-माहौल यहाँ अचे दीखते ज़रूर है 

पर है नहीं,

न पूछ मेरे कैफियत-ए -ख्यालों की,


सवाल-ए-दुनिया का मैं क्या जवाब दू,

सवाल-ए-ज़ेहन का ही तोह मेरा कोई जवाब नहीं,

बहुत कोशिश मैंने बताने की 

तुझे साड़ी बातें शब्दों में,

फ़क़त कुछ पल ही लगते मुझे उस केलिए,


पर तेरी आँखों को देख 

होंसला न जूता सका की इस

अब्र-ए-ख़ामोशी को मिटा सकूँ,

है तू रूठा मुझसे ये मालूम है मुझको,

है परेशान तू हरकतों से मेरी ये भी पता है मुझको,


वक़्त रैथ की तरह न फिसलता 

तोह शायद समझा भी पता,


यह इक सोज़-ए-क़लक़ है 

जो जलाती रही मुझे,

जिससे लड़ते रहने की 

मुझ में और हिम्मत नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract