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Shoumeet Saha

Abstract Romance

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Shoumeet Saha

Abstract Romance

दिल का खाली पन्ना

दिल का खाली पन्ना

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तुझसे मुलाक़ात करते करते यूँ दोस्ती हो गयी,

इश्क़ का सब तोह यूँ इत्तेफ़ाक़ से हो गयी,


कुछ वक़्त बीतें खुशाल लम्हों में,

बातों में हमारी कई रातें गुज़र गयी,


यूँ न सोचा था कभी की हम उतने करीब आ जायेंगे,

इक दूसरे की बातों से ज़्यादा, 

इक दूसरे के चेहरे देख कर ही साड़ी बातें हम समझ जायेंगे,


जब इज़हार करने का मौक़ा मिला 

तो हम इज़हार कर भी चुके,

शायद इस बात की तुझे पहले से इत्तिला

की जब खुद से बयान हुई तोह रास न आयी तुझे,


बोहोत वक़्त बीत गया 

नज़रअंदारी में तेरी उस पल के बाद,


तेरी इक आहात भी न सुनाई दी,

ढूंढ़ते रहे हम तुझे हर जगह 

पर तेरी कोई निशाँ भी न दिखाई दी,


जब जवाब आया तेरा तोह मुझे यकीन न हुआ,

तू सब कुछ तोड़ देना चाहती थी 

आखिर यह कैसे मुमकिन हुआ?


सोचा की फिर लिखू तुझे की 

कैसे ख़तम करदे इक पल में सब कुछ?

शायद यह तेरा ही असर था की बे-लफ्ज़ रहे हम 

इस कदर की कुछ बयान न हुआ, 


अगर मोहोब्बत न सही,

कमसेकम दोस्ती तोह निभा सकते थे,

हाँ है यह रिश्ता मुश्किल मगर कोशिश तो हर सकते थे,


अब जो फासले है हमारे बीच 

वह ख़ामोशी से भरा है,

जिस में अँधेरे के सिवाए और कुछ नहीं बचा है,


तुझसे खफा नहीं हु मैं 

पर दिल में तुझसे बिछड़ जाने 

का ग़म आज भी रहता है,


तू याद आती है आज भी मुझे 

पर उस याद की कोई वजह नहीं है बाकी,


बस इक सवाल सी बन गयी तू मेरी ज़िन्दगी में,

किताबों में खाली पन्नों की तरह 

जो एहसास से भरे ज़रूर,

पर बे-लफ्ज़ से है जैसे लिखे हुए हो 

किसी सूखे क़लम की तरह......


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