पर यकीन मानों भावना ज़मीर से ना गिरते हैं। पर यकीन मानों भावना ज़मीर से ना गिरते हैं।
चलो मेरे साहिब आज अपनी कैद से तुझे आजाद करता हूँ ! चलो मेरे साहिब आज अपनी कैद से तुझे आजाद करता हूँ !
उतर रही है इक नज्म कलम से कागज पर उतर रही है इक नज्म कलम से कागज पर
ऐसा लगता है कहीं घुट के मर तो नहीं रहें हैं हम। ऐसा लगता है कहीं घुट के मर तो नहीं रहें हैं हम।
आजकल बेवजह हम मुस्कुराने लगे हैं ! आजकल बेवजह हम मुस्कुराने लगे हैं !
सहेजा अपने अंतर्मन तक कागजी दुनिया में सहेजा नहीं। सहेजा अपने अंतर्मन तक कागजी दुनिया में सहेजा नहीं।