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Neetu Lahoty

Abstract

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Neetu Lahoty

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दफ़न होते हम

दफ़न होते हम

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तुझे भूलने की कोशिश में 

इस हद से गुजरें हैं हम 

अपने ही अक्स को 

पहचानने से तरसे हैं हम 


यूँ तो बयां करते नहीं 

हम अपने दर्द को 

खुद की ख़ामोशी से भी 

अब डरते हैं हम 


परत दर परत खुद को 

खोल में सिमटे हैं 

कहीं खुद के ही लिबास में 

दफ़न न हो जायें हम 


अश्क आ ही जाते हैं 

बिन बात भी

ऐसा लगता है 

कहीं घुट के मर तो नहीं 

रहें हैं हम। 


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