पुरानी दास्ताँ ..
पुरानी दास्ताँ ..
पुरानी किताब के पन्नों पर
कलम से लिखी दास्ताँ
नासबूर होकर
उछल रही है
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
कुछ अनदेखे सपने
कुछ अनकही बातें
मायूस करने वाले
गलतियों के एहसास
मुसर्रतकी दावत खिलाने वाले
अनगिनत दोस्त
असीर बनाके उन्हें
बंद कर दूँ अब्सार में
तो भी कर रहे हैं बगावत
आहिस्ता आहिस्ता
छलक रहे है ये अल्फाज
दिल से जुबाँ पर
मत कहो इन्हें अब्तर
वो अश्फाक है मेरे
मेरे अजीज और अदीब
दोस्तों की तरह
अब बहने दो उन्हें
अश्क बनकर
बरसने दो उन्हें
सावन बनकर
रेशम का लिबाज पहने
उतर रही है इक नज्म
कलम से कागज पर
शायद वही है वो
पुराने किताब के पन्नों पर
कलम से लिखी
नासबूर होकर उछलने वाली
वही पुरानी दास्ताँ।
