तू और तेरी तस्वीर
तू और तेरी तस्वीर
बैठ कोने में तल्लीन होकर,
बनायी थी एक तस्वीर तेरी।
सोचा था जब मिलेंगे हम,
तब दिखाऊंगी तुझे कलाकारी मेरी।
पर मिलना तो दूर की बात,
तूने तो मुझसे बात करना ही छोड़ दिया।
अपनी आदत लगाकर,
फिर एक पल में नाता ही तोड़ दिया।
कसूर तो बताता एक बार,
हम अपनी गलती सुधार लेते।
तेरे सामने रोते हाथ जोड़ते,
पर तुझको ना जाने देते।।
अब जब मैं तुझे देख नहीं पाती
तो ये मासूम दिल बहुत रोता है।
पर तू ना जाने मुझे भुलाकर,
मुझे रूलाकर कैसे चैन से सोता है।
जो तस्वीर बनाई थी तेरी,
उस पर परत दर परत धूल जम गयी।
तुझ पत्थरदिल से प्यार करना,
मेरी सबसे बड़ी भूल बन गयी।
लाख चाहा कि फाड़ कर,
फेंक दूं वो तेरी तस्वीर।
पर हाथ काँप जाते हर दफ़ा,
बह उठता मेरी अंखियों से नीर।
दिल भर जाता है याद आता है,
तू निकला कितना बेवफ़ा।
जाने किसको जाकर सुनाएं,
जिन्दगी का यह फलसफ़ा।।
उदास सी शाम है,
तन्हा वीरान है मेरी लम्बी काली रातें।
तू ना सही तेरी तस्वीर से ही,
करती हूँ अब दिल की बातें।