बरसात
बरसात
सुनो, बिन मौसम बरसात देखी है तुमने कभी?
देखी है क्या??
एकदम से बादलों का आना और आसमां पर छा जाना,
पूरे आसमान को अपने आगोश में समेटते
ये नटखट बादल बरसने लगते हैं थोड़ी-थोड़ी देर में...
बरसती बूँदें कभी एकदम तेज़ तो कभी हौले-हौले,
और कभी बिल्कुल रिमझिम फुहार चलती है सारी
रात...
कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी है तुम बिन,
तुम्हारी यादों के बादल घेर उठते हैं
मुझे और मेरे समूचे वजूद को...
आँखें रह-रहकर बरसने लगती हैं तुम्हारी याद में,
तड़प उठती हैं बाँहें तुम्हें अपने आगोश में लेने के लिए
पर तुम होकर भी नहीं हो मेरे...
मैं और मेरी तन्हाई मचल-मचल कर पुकारते हैं तुम्हें,
लेकिन तुम ना जाने कहाँ छुप कर बैठे हो
कि दिखाई ही नहीं देते, जरा से भी नहीं...
तब बारिश होने के बाद मौसम होता है ना
खाली-खाली सा,
पर कभी-कभी लम्बी चुप्पी के बाद सहसा
पानी रिसने की आवाज़ आ जाती है बीच-बीच में...
हाँ, ठीक वैसे ही मेरी आँखें,
टपका देती है दो बूँद एक लम्बी रूलाई के बाद
अंतिम दो बूँदें टपक-टपक...
और फिर से अगला दिन, अगली रात
अनन्त,अविराम, बेचैन, खामोश
बरसते पानी के सुने-अनसुने शोर के साथ...
तो सुनो ना! बिन मौसम बरसात देखी है तुमने कभी?
देखी है क्या??