दर्द
दर्द
ख़त नहीं लिखेंगे तुम्हें,
ना कभी अब पुकारेंगे।
अपने सब्र के पैमाने पर,
खुद को ही आजमाएंगे।
ना जीने की चाह बची,
ना बाकी रहा कोई हौंसला।
वक्त की आँधी ने उड़ा दिया,
सपनों का सुंदर घोंसला।
इच्छा थी कि चाँद तोड़ लाएं,
महल सजाए थे हमने भी कभी ख़्वाबों के।
आज गुलाम है नसीब के,
वरना थे शौक तो कभी हमारे भी नवाबों के।
दर्द का सागर है गम की लहरें हैं,
जहरीली सी बहती हवाएं है।
उम्र के बेशकीमती पल हमने,
सिर्फ तेरे इंतज़ार में गंवाये हैं।
अफसोस कि कभी चाहा था तुमको,
अब नहीं कभी इश्क की राह पर दुबारा जाएंगे।
बस बहुत हुआ ये रोना-धोना,
तुझ बेवफ़ा का दिया दर्द हम नज़्म बनाकर गाएंगे।
