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Sushma s Chundawat

Tragedy

4.3  

Sushma s Chundawat

Tragedy

रात पसंद है मुझे

रात पसंद है मुझे

1 min
104


दिन के उजाले से ज्यादा,

रात पसंद है मुझे...

क्योंकि उसके काले अक़्स में,

खो जाती है मेरी परछाई...

मेरे वजूद को समेट लेती है,

वो अपने वजूद में...

कोई अंतर नहीं रह जाता,

फिर उसमें और मुझमें...

दूर से देखो या पास से, 

सिर्फ स्याह नज़र आती हूँ मैं...

छिप जाती है अँधेरे में, 

सूजी आँखे उदास चेहरा...

काला रंग नज़र आता है, 

बस तटस्थ गाढ़ा काला रंग मुझमें...

पहचान कभी बनी ही कहाँ, 

जो अंधकार में खो जाती...

डर तो उजाले से है,

जो चुगली करता है इस चेहरे की सबसे...

मेरा तो सहारा और पसंद,

सब कुछ ये रात ही है...

मुझे डर लगता है सूरज से,

बहुत भयानक होता है वो...

जो अपने प्रकाश में चमकाता है,

मोतियों की लड़ जैसे मेरे झरते आँसू...

बस इसीलिए दिन के उजाले से ज्यादा,

रात पसंद है मुझे...

बूरी तरह से टूट कर गहन अँधेरे में,

रो लेती हूँ जी भरकर और कोई देख नहीं पाता...

अंखियों से बिखर-बिखर जाता खारा पानी,

पर सुबह सुर्ख़ आँखो का राज़ कोई समझ नहीं पाता...

ये रात, हर रात मुझे अपनी मनमानी करने का मौका देती है,

जितना चाहूँ उतना रो लूं कभी ना मुझे टहोका देती है...

बस इसीलिए दिन के उजाले से ज्यादा,

रात पसंद है मुझे !~



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