कोना
कोना
मन अक्सर कोने क्यों तलाशता है???
भीड़ में होता है, तो भीड़ का
अकेलापन अखरता है,
अकेला होता है, तो लोग चाहिए...
क्लास, लाइब्रेरी, मेट्रो, ट्रेन, ऑफीस...
हर भीड़ भरी जगह उसे तलाश रहती है,
एक ऐसी कॉर्नर सीट की,
जहाँ से, वो लोगों को आते
जाते हुए तो देख सके,
पर लोगों की नज़र उस पर ना पड़े।
अजीब है.. पर सच,
मन अक्सर.. खुद के लिए
कोने ही तलाशता फिरता है,
कोना...जो उसे सुकून दिलाता है।
भीड़ में खो कर,
भीड़ से अलग हो जाने का कोना ।।
मन का करके खुशी मिलती है,
"पर कुछ छूट रहा है" का
ख्याल कचोटता रहता है।
मन भी ना , बात- बेबात,
दिल और दिमाग की
अजीब सी तनातनी में,
दिन रात खर्च होता रहता है ...
अपने मन मुताबिक ।।