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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

भूख

भूख

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आदमी की भूख कभी भी ख़त्म नही होती है

समंदर से भी उसकी प्यास पूरी नही होती है

जितना दो उसे,उतना ही उसके कम पड़ता है,

इंसानों की भूख फ़लक से भी ऊंची होती है


हर जगह उसको बस पैसा ही पैसा दिखता है

इंसान को हर रिश्ते में पैसे की गंध दिखती है

अपने साथ वो कुछ भी लाता नही है

अपने साथ वो कुछ भी ले जाता नही है


फिऱ भी इंसानो की भूख सुरसा सी दिखती है

जिस इंसान की केवल संतोषी-प्रवृत्ति होती है

उसे रज में भी सोने की गंध महसूस होती है


संतोषी आदमी की सदा जग में विजय होती है

संतोषी आदमी की भूख चींटी से छोटी होती है।


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