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Ashish Agrawal

Drama

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Ashish Agrawal

Drama

मैं वह भाषा हूं

मैं वह भाषा हूं

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मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम गाते हँसते हो

मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम अपने सुख दुख रचते हो।


मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम सपनाते हो, अलसाते हो

मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम अपनी कथा सुनाते हो।


मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम जीवन साज पे संगत देते

मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुम, भाव नदी का अमृत पीते।


मैं वह भाषा हूं,

जिसमें तुमने बचपन खेला और बढ़े

हूं वह भाषा, जिसमें तुमने यौवन,

प्रीत के पाठ पढ़े।


मां ! मित्ती खाली मैंने...

तुतलाकर मुझमें बोले

मां भी मेरे शब्दों में बोली थी-

जा मुंह धो ले।


जै जै करना सीखे थे,

और बोले थे अल्ला-अल्ला

मेरे शब्द खजाने से ही खूब किया

हल्ला गुल्ला।


उर्दू मासी के संग भी खूब

सजाया कॉलेज मंच

रची शायरी प्रेमिका पे और

रचाए प्रेम प्रपंच।


आंसू मेरे शब्दों के और प्रथम प्रीत

का प्रथम बिछोह

पत्नी और बच्चों के संग फिर,

मेरे भाव के मीठे मोह।


सब कुछ कैसे तोड़ दिया और

सागर पार में जा झूले

मैं तो तुमको भूल न पाई

कैसे तुम मुझको भूले।


भावों की जननी मैं, मां थी,

मैं थी रंग तिरंगे का

जन-जन की आवाज भी थी,

स्वर थी भूखे नंगों का।


फिर क्यों एक पराई सी मैं,

यों देहरी के बाहर खड़ी

इतने लालों की माई मैं,

क्यों इतनी असहाय पड़ी।


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