इज़हार
इज़हार
जला के लकड़ियां गीली, मैं क्यूँ धुआँ करता हूँ,
जला के लकड़ियां गीली, मैं क्यूँ धुआँ करता
वो दिल की बात थी, उसको मैं कहाँ कहाँ करता हूँ ।
वो सिसकती है चंद साँसे उसकी, अब भी सीने में,
वो सिसकती है चंद साँसे उसकी, अब भी सीने में,
मैं काफ़िर ऐसा हूँ, उसकी हर धड़कन को गिनता हूँ ।
हाँ खुशफ़हमी के दरीचे तले, अब मैं रोज खोता हूँ,
हाँ खुशफ़हमी के दरीचे तले, अब मैं रोज खोता हूँ,
उसकी महकती यादों से ये दिल गुलज़ार करता हूँ ।
वो तब इक़रार करती थी, झुकी पलकों से भी, इज़हार करती थी ।
वो तब इक़रार करती थी, झुकी पलकों से भी, इज़हार करती थी ।
उसको खोकर है जाना ये, कि मैं उससे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।
जला के लकड़ियां गीली, क्यूँ अब ये आँखें नम करता हूँ ,
वो दिल की बात थी उसको मैं अब इक बार कहता हूँ
मोहब्बत थी और हो मेरी, हाँ अब ये इज़हार करता हूँ ।।