वो तुमसे मिलना
वो तुमसे मिलना
सुनो न, कहानियां तुमने सुनी भी होंगी और सुनाई भी ,
आज कुछ वक्त मेरी कहानी को भी दे ही देना ।
किस्सा कुछ रोज पहले शुरू हुआ,
तुमसे मिलना कुछ इत्तेफाक सा था ।
देखता तुम्हें हर कोई था शायद
मगर बंद आँखों से तेरे लफ्ज़ो को, किसी ने न सुना होगा ।
वो मिलना उनसे कुछ इस कदर हुआ कि
चंद लफ्ज़ो में बस हल्का सा ज़िक्र हुआ ।
न उसने कुछ कहा और न हमने कुछ कहा
बस साथ होने का एहसास था, दोनों को हुआ।
ज़िन्दगी दोनों की, बहुत जुदा-जुदा सी थी
एक के आँगन में तमाम जमाने की खुशियां
तो दूजे के पास बस अश्क़ भरे ग़म ही थे ।
फिर भी न जाने कौन सी डोर थी,जो
उन दोनों को करीब खींच ही लाई थी ।
पल में बातें, वो कौन है से ,आप ठीक हो न पर चली आई थी।
हाँ उसकी आवाज़ की कशिश में भूल बैठी वो अपना कल
और वो मुस्कुराहट पर बहक गया उसका भी संगदिल ।
वक़्त रुकने का नाम नही ले रहा था और हर एक पल
के साथ जैसे वो ख़ुद को उसमें भूले जा रही थी ।
हाल कुछ ऐसा तुम्हारा भी था, गर न होता तो
वो यूँ ही सुबह तलक उसके साथ न होता ।
जिसे सारी रात बेचैन रहे कुछ कहने को
वो उलझे से कुछ जज़्बात तो वो अनकहे राज़ ।
कह दिया वो सब जो तुम्हारे दिल मे था
मगर जान ही न पाए तुम, उसके दिल की बात ।
बस इसी कशमकश में रात वो गुजरती गई
और तुम, तुम फिर आने का वादा करके, चले गए
ये भी नही सोचा कि कैसे वो पल,बीतेंगे इन्तेज़ार के
शायद ख़बर न थी तुम्हें उसके इक़रार की।
वो पगली सी,हर बारिश में जाकर रोती रही
अपने अश्कों को बार बार यूँ भिगोती रही ।
क्या करती आख़िर, फ़िर मिली न उसे सजा
किसी पर यकीं करने की, किसी को फिर
अपना समझने की ।
वो जानता था, पहले से ही बिखरी है वो,
मगर शायद , उस वक़्त के अलावा उसके लिए
अब उसके पास वक़्त ही नही था ।
या शायद उस रात में उसे बस तन्हा नही रहना था
और वो बस बनकर रह गई, उस एक रात का जरिया ।।
हाँ नही आया था वो,वादा निभाने ,
हाँ मगर देखा हर रोज उसे मुस्कुराते हुए,
औरों के संग बतियाते हुए ।
कुछ न कहाँ बस चली गई वो बिन कुछ कहे
बस छोड़ गई यादो की एक पर्ची उसके लिए
जिस पर लिखा था उसने, सुनो न
अपना ख़्याल रखना,और हो सके तो
मेरे ख़्यालों में अब न आना ।।
कहानी छोटी है मगर एहसास वही है
दर्द वही है और जज़्बात वही है जो उसकी
दिल्लगी से दिल की लगी बन गया ।।
वो तन्हा थी मगर अब फिर बिखर गई,
उसकी ये कहानी भी अधूरी ही रह गई।।