मेंहदी
मेंहदी
मेहंदी से सजती थी
कभी मेरी हथेलियां
या चांद छुपता था आकर
मेरे हाथों में..
तुम्हारी कविताओं में
होती थी मैं, या
तुम्हारे जीवन की
इकलौती कविता थी मैं।
फैसला तुम्हारा था या
कोई मजबूरी थी,
परछाई देखती कैसे,
अमावस के इस पहर में मैं,
अब तो मैं हूँ भी या हूँ भी नहीं...
ये भी मैं भूल गई।