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Rooh Lost_Soul

Abstract

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Rooh Lost_Soul

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कविता में कहानी - चाय और मैं

कविता में कहानी - चाय और मैं

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चाय, याद है मुझे, तुमसे मैं ज्यादा मिला नहीं

या कह लो कि तुम मुझे, कुछ ख़ास पसंद थी नहीं ।

तुम्हारी ख़ुशबू मुझे कई बार छूकर चली जाती थी

मगर शायद मैं बचता था, तुम्हें छूने से

या तुम्हारे करीब आने से और तुम भी न,

ज़िद बना ली तुमने भी, मेरे पास आने की।


तभी तो, क्या पता था तुम एक दिन

इतनी हसीन बनकर मेरे पास आओगी ।

चेहरे पर भीगी हुई बिखरी ज़ुल्फो तले

वो उसके हाथ की बनी पहली चाय बनकर

मेरे लबों को छू जाओगी ।

पता नहीं वो स्वाद तुम्हारा था या उन हाथों का

जिसने तुम्हें उस रोज बनाया था ।

मोहब्बत के हाथों एक और इश्क़ से मुझे मिलाया था ।


वो दिन था और आज का दिन, तुम ही मेरे साथ हो ,

बनकर उसकी याद, जिसके हाथों से कभी पिया था तुम्हें पहली बार ।

हाँ वो ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा कर चली गई

बस तुम ही नहीं जा पाई कभी, मुझसे दूर ।


संभाला तुमने मुझे हर रोज गिरने से,और

खींच लाई, हर बार उसकी यादों से।

तुम्हारे साथ ही तो इस तन्हाई को जिया है मैंने

न जाने कितनी दफ़ा तुम्हें अब हर रोज पिया है मैंने

वो तेरी ख़ुशबू में अक्सर खुद को भूल जाता हूँ

हाँ मगर वो हमारी पहली सी मुलाक़ात को

न तुम भूल पाई हो और न मैं भूल पाया हूँ ।।



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