सपनों की जिंदगी गुलाम बनाती है
सपनों की जिंदगी गुलाम बनाती है
सपनों की जिंदगी गुलाम बनाती हैं
गुलाम बना कर बड़ा सताती हैं
जब घर से निकलें कुछ बनने
मुश्किलें जमकर आती हैं
मन में कुछ करने का ज्जबा बढ़ता है
मस्तिष्क कोशिश करता जाता हैं
हर रास्ता हर तरकीब अपनाता है
बन बावरा मंजिल पाना चाहता है
सपनों की जिंदगी गुलाम बनाती है
गुलाम बनाकर बड़ा सताती है
क्योंकि जिंदगी सुकून चाहती है
मंजिल थी कुछ और पाने की और
पा कुछ और ही जाती है
जब जीवन में निरन्तर
गिरना-बिखरते टूटते इंसान को
खुदा के फरिश्ते से उम्मीद बाकी है
अंधेरे के बाद उजाला फिर आता है
थकान के बाद सुकून फिर आता है
सपना है कुछ और जिंदगी का
पर सपने में कोई और आता है
पता नहीं राह में यहाँ भटक जाता है
या राह में सम्भल जाता हैं
मंजिल मिले या ना मिले
बस एक के बाद एक नयी
सपनों की उड़ान भरती जाती हैं
ये जिंदगी बहुत दौड़ती हैं
कभी सही, तो कभी काम भी करवाती हैं
सपनों की जिंदगी गुलाम बनाती है
गुलाम बनाकर बड़ा सताती है।