मनुस्मृति अमर हैं
मनुस्मृति अमर हैं


मनुस्मृति अमर हैं
माना उसमें हैं भेदभाव
जिसे जला डाला अम्बेडकर ने
पर मनुस्मृति अमर है
एक जला ग्रंथ
रक्त बीज बन हजार मन में जन्म लेते हैं
इतिहास की किताबों में,
धर्म में ही नहीं
लोगों के मस्तिष्क में
स्वर्णों के काले पन्ने, इतिहास में
हर दलित के मस्तिष्क में
पीढ़ी दर पीढ़ी
जैसे कोई रिवाज हो
इस ज्ञान को आगे बढ़ाने का
ठाना हैं लिखित की जरूरत नहीं
ये रिवाज
वाणी से ही अमर हैं
नहीं हैं कहीं भेदभाव
स्कूल कॉलेज दफ्तर
न ही खान पान में
न शादी ब्याह
न जन्म म
रण में
यहीं हैं आधुनिक परिवार समाज
पर मस्तिष्क में
मनुस्मृति अमर हैं....
अमीरी गरीबी की,
जन्म मरण की,
रंग रूप की,
ज्ञान अज्ञान की जात नहीं होती,
फिर भेदभाव किस बात पर
पर मनुस्मृति अमर हैं,
कहां से आए पता नहीं
कहां जायेंगे पता नहीं
क्यों यहां चैन से जीते जी जीना नहीं
मनु ग्रंथ व संविधान
में विवाद क्यों ?
भगवान ने आकर इन्हें लिखा नहीं
कितने वर्षों तक चलेगा यह
बहुत हुआ विवाद
जीना यहीं मारना यहीं
जो गलत हैं वह बदलेगा ही
पर अफसोस होता हैं
मनुस्मृति अमर है।